ये आजादी बिक चुकी है
एक जोड़ी चप्पल, दो गज़ जमीन, रेशम का एक सोने के सिरे वाला रुमाल और गोल फ्रेम वाले चश्मे – इसके बदले में मैंने बेच दी आज़ादी अपनी। अब मजे की बात है क्यों छुपाये तुमसे। मैं बोल सकता हूं अपनी कहानी लेकिन डर है थोड़ा सा की कहीं किसी को समझ आयी तो मैं पागल कहलाउंगा या शायद देश द्रोही।
Office मे 8 घंटे के अंदर चाय और computer के screen के बीच की गई आज़ादी के बारे मे चंद बातें को सुनकर और उसमे छूटी हँसी मे डूबकर – मेरी आज़ादी ने खुदकुशी कर ली। पिछले हफ्ते ही बहन की शादी थी। शादियों मे मंगल गान के साथ दंगल गान भी बजता हुआ लगा मुझे। वहाँ फेंके गए खाने मे से नौबत आयी अगर खाने की तो बताओ। दहेज के रुमाल से छिपाकर आज़ादी को ढाई सौ की शीशियों मे गटक जाने वालों से क्या कहूं। बस ऐसे ही बेच दी हमने उसकी आज़ादी। उसे हमने बस इतना कहा की सीमा पर हमारे देश के लिए खड़े जवानों सा बहादुर बनना पड़ेगा उसे। आखिर वो ही तो देश के अंदर की शांति बनाए रख रही हैं। समझ गयी वो।